पेड़ के भीतर फव्वारा नहीं होता, तब पेड़ की जड़ों से पत्ते तक पानी कैसे पहँुचता है? इस क्रिया को वनस्पति-शास्त्र में क्या कहते हैं? क्या इस क्रिया को जानने के लिए कोई आसान प्रयोग है? जानकारी प्राप्त कीजिए।

यह तो सत्य है कि पेङ के भीतर फव्वारा नहीं होता और फिर भी जङ से अवशोषित होने के बाद जल पत्तियों पर पहुंच जाता है। यह कोई जादू का कार्य नहीं है। प्रकृति ने पेङ की संरचना ही इस प्रकार से की है कि यह क्रिया यहां पर हमें देखने को मिलती है। ऐसा पेङों के तने में उपस्थित जायलेम कोशिकाओं के द्वारा संभव हो पाता है। ये जायलेम कोशिकाएं जङों द्वारा अवशोषित जल को अपनी ओर उपर की तरफ खींचता है। फिर यह जल और उपर यानि पत्तियों की ओर फेंका जाता है। इस क्रिया को वनस्पतिशास्त्र में ‘कोशिका क्रिया’ कहते हैं।


प्रयोग- हम रंगीन पानी भरे एक बीकर में श्वेत पुष्प वाले पौधे को डालते हैं। थोड़ी देर बाद हम पाते हैं कि श्वेत पुष्प पर रंगीन धारियां पङ गयी हैं। वास्तव में पौधे के जङों से रंगीन जल अवशोषित होकर पत्तियों के उपर तक पहुंच गया। पौधे के तना में उपस्थित जायलेम कोशिका की कोशिका क्रिया द्वारा ही ऐसा संभव हो पाया।


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